टेक्नोलॉजी की दुनिया में इन दिनों एक शब्द ने कोहराम मचा दिया है। वह है ‘चैटजीपीटी।’ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) से लैस चैटबॉट चैटजीपीटी पिछले साल 30 नवंबर को लॉन्च हुआ। जनवरी में इसके मासिक एक्टिव यूजर 10 करोड़ हो गए।
इसके साथ ही यह इंटरनेट के इतिहास का सबसे तेजी से बढ़ने वाला कंज्यूमर एप्लीकेशन बन गया। जनवरी में रोज 1.3 करोड़ यूजर जुड़े। इतने इस्तेमाल के बावजूद हड़कंप है। क्यों...? दरअसल, चैटजीपीटी से कई व्हाइट-कॉलर जॉब्स खतरे में हैं। एजुकेशन इंस्टिट्यूट में भी चिंता है। हालांकि यह खतरा निकट भविष्य में नहीं है।
क्रांति है चैटजीपीटी, आएगी ही; प्रोडक्टिविटी बढ़ेगी
दरअसल, चैटजीपीटी की कई सीमाएं हैं। जैसे यह फिलहाल 2021 तक का ही डेटा देता है। क्रिएटर ने इसे अपने हिसाब से बनाया है। यानी इसकी जानकारियां पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं। कई जवाब गलत भी देता है। इसलिए विश्वसनीय कम है। खास बात, चैटजीपीटी के पास इंसानों जैसा कॉमन सेंस नहीं है। यह कोई नई चीज विकसित नहीं कर रहा है।
यह मौजूदा डेटा के आधार पर ही सैंपल जनरेट करता है। चूंकि आने वाले समय में यह तेजी से विकसित होगा। इसलिए कई जॉब को खतरा तो होगा। यही संकट भारत पर भी है। बेहतर यह है कि हम मैनपावर की स्किल डेवलप करें। चैटजीपीटी से मुकाबला उद्देश्य नहीं होना चाहिए। क्योंकि यह क्रांति है। आएगी ही। जब कंप्यूटर आया था, तब भी बोला गया था कि नौकरियां खा जाएगा। लेकिन हुआ उल्टा। काम जल्दी होने लगे हैं। चैटजीपीटी भी व्यर्थ समय बचाएगा। इससे सिर्फ उन लोगों पर फर्क पड़ेगा, जो स्किल डेवलप नहीं करेंगे। निकट भविष्य में चैटजीपीटी जैसे टूल से प्रोडक्टिविटी बहुत बढ़ने वाली है।
फोर्ब्स के मुताबिक, सक्रिय एआई स्टार्टअप की संख्या 14 गुना बढ़ी। 72% एग्जीक्यूटिव ने माना कि भविष्य में एआई बिजनेस का सबसे अहम अंग होगा।
चैटजीपीटी के कदम इन जॉब्स की तरफ...
- टेक जॉब्स (कोडर्स, कंप्यूटर प्रोग्रामर्स, सॉफ्टवेयर इंजीनियर, वेब डेवलपर, सॉफ्टवेयर डेवलपर, डेटा एनालिस्ट)
- मीडिया जॉब्स (कंटेंट क्रिएशन, एडवरटाइजिंग, टेक्निकल राइटिंग, जर्नलिज्म)
- लीगल इंडस्ट्री जॉब्स (पैरालीगल्स, असिस्टेंट्स)
- मार्केट रिसर्च एनालिस्ट्स
- टीचर्स, प्रोफेसर्स
- फाइनेंस जॉब्स (फाइनेंशियल एनालिस्ट्स, एडवाइजर)
- ट्रेडर्स, शेयर एनालिस्ट
- ग्राफिक डिजाइनर्स
- अकाउंटेंट्स
- कस्टमर सर्विस एजेंट।
क्या कर रहा चैटजीपीटी
चैटजीपीटी (जनरेटिव प्री-ट्रेंट ट्रांसफॉर्मर) एप्लीकेशन ऐसा मशीन लर्निंग सिस्टम है, जो डेटा से सीखता है और रिसर्च कर परिणाम देता है। अब डाल-ई टूल भी मौजूद है। यह टेक्स्ट के बदले 3डी इमेज बनाता है।
ऐसे बेहतर इस्तेमाल संभव
- टीचर्स कंटेंट की कमी पूरी कर सकते हैं। बचे समय में टीचिंग पर ध्यान दे सकेंगे।
- शिक्षा में एआई को अतिरिक्त टूल के रूप में शामिल कर सकते हैं। अन्यथा हमारा मौजूदा एजुकेशन सिस्टम पुराना साबित होगा।
सैम आल्टमैन ने बनाया ऐप
सैम आल्टमैन ने 8 साल की उम्र से कोडिंग सीखी।16 साल की उम्र में घर छोड़ दिया था। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी दो साल बाद छोड़ दी और मोबाइल एप बनाने लगे।
लेखक: प्रशांत मिश्रा, टेक्नोलॉजी एंटरप्रेन्योर, आईटी एक्सपर्ट