आपने शहरों की दीवार पर ‘यहां पेशाब करना मना है; 500 रुपए जुर्माना है’ जैसे चेतावनीनुमा इश्तहार देखे ही होंगे। शहरों के कुछ फेमस ‘पी-पॉइंट’ से भी गुजरते होंगे; जहां लोग आराम से खुले में यूरिन पास करते नजर आ जाते हैं।
अभी कुछ दिन पहले ही एयर इंडिया की इंटरनेशनल फ्लाइट में एक यात्री ने महिला के ऊपर पेशाब कर दिया। इस मामले में एयर इंडिया को माफी मांगनी पड़ी और आरोपी जेल गया। दूसरी ओर, लंदन में एक ऐसी दीवार बनाई गई है जहां खड़े होकर यूरिन पास करने पर यूरिन वापस व्यक्ति पर ही गिरता है।
खुले में यूरिन पास करने की समस्या सिर्फ भारत में नहीं है। जर्मनी में इससे बचने के लिए पुरुषों के खड़े होकर यूरिन पास करने पर पाबंदी है तो फ्रांस ने अपने यहां स्पेशल गमले लगाए हैं, जो यूरिन को खाद में बदलकर फूलों के पौधों को पोषण देगा।
अपने देश में खुले में यूरिन करने पर पकड़े गए तो जुर्माने से लेकर माला पहनाकर शर्मिंदा करने और फोटो खींच सोशल मीडिया पर डालने तक की कवायद की जा चुकी है। लेकिन, फिर भी लोग ये आदत नहीं छोड़ रहे।
आगे बढ़ने से पहले इस बुरी आदत की वजह पर अपनी राय देते चलिए…
आखिर ये सब उपाय क्यों करने पड़ते हैं? यूरिन पास करने को बोलचाल की भाषा में ‘नित्य कर्म’ कहते हैं। आखिर ये ‘नित्य कर्म’ किन मामलों में अनैतिक हो जाता है? चलिए-समाज में फैली इस बुरी आदत पर चर्चा आज करते हैं।
यह जानेंगे कि कैसे खुले में यूरिन करना दो देशों में झगड़े की वजह बना और क्यों रोमन साम्राज्य में यूरिन करने पर टैक्स लगता था। भारतीयों को मिले उस अधिकार के बारे में भी जानेंगे जो उन्हें किसी भी होटल में जाकर ‘हल्का’ होने का अधिकार देता है। साथ ही हम इस पुरानी बुरी आदत को सुधारने के नए मैनर्स से भी वाकिफ होंगे।
सबसे पहले ‘एंटी-पी वॉल‘ के बारे में जान लेते हैं और यह भी कि लंदन जैसे शहर में इसकी जरूरत क्यों पड़ी।
लंदन का एक इलाका है- ‘सोहो’; जो अपनी नाइट लाइफ के लिए मशहूर है। यहां बड़ी संख्या में नाइटक्लब्स और रेस्टोरेंट हैं। जाम छलकाने के बाद मैनर्स फॉलो करने के लिए मशहूर अंग्रेज भी कभी-कभी तमीज भूल जाते हैं। दूसरी ओर, इस इलाके के पब्लिक टॉयलेट को कोविड के दौरान बंद कर दिया गया था, जो बाद में कभी नहीं खुला। ऐसे में सोहो आने वाले कस्टमर्स ने आसपास की दीवारों को टॉयलेट के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। जिसके चलते वहां के स्थानीय लोग काफी परेशान हो गए।
आखिरकार यहां के लोगों ने अपने घरों की बाहरी दीवारों पर इंडस्ट्रियल लिक्विड से बना एक स्पेशल पेंट लगवाया। यह पेंट अपने ऊपर आने वाले किसी भी लिक्विड को अपोजिट डायरेक्शन में रिटर्न कर देता है।
इस पेंट को लगाने के बाद दीवारों पर चेतावनी के रूप में एक बोर्ड भी लगाया गया, जिसपर लिखा था- यह दीवार है, टॉयलेट नहीं; इस इलाके में ‘एंटी-पी वॉल’ लगे हैं।
हजारों साल पुराना है यूरिन का विवाद
यूरिन पास कहां करें और कैसे करें; यह कोई आज का विषय नहीं है। हजारों सालों से अलग-अलग संस्कृतियों में इसको लेकर बहस होती रही और सोसाइटी के बनाए यूरिन मैनर को तोड़ने वालों पर जुर्माना लगाया जाता रहा है।
जर्मनी में पुरुषों के खड़े होकर यूरिन करने पर है प्रतिबंध
जर्मनी में किसी भी पब्लिक टॉयलेट में पुरुषों के खड़े होकर यूरिन करने पर रोक है। यहां पुरुषों को भी महिलाओं की तरह बैठकर यूरिन पास करना पड़ता है। दरअसल, पब्लिक टॉयलेट को लेकर महिलाओं की शिकायत थी कि पुरुषों के जाने के बाद टॉयलेट इस्तेमाल लायक नहीं रह जाता। जिसके चलते वहां खड़े होकर पेशाब करने पर रोक लगा दी गई।
बैठकर यूरिन पास करना मर्दों की शान के खिलाफ, गढ़ा नया शब्द
जर्मनी में सरकार ने नियम तो बना दिया। लेकिन काफी लोग आज भी इसका पालन नहीं करते। जर्मनी के पुरुषों में आम धारणा है कि बैठकर यूरिन पास करना मर्दाना आदत नहीं है। वहां बैठकर यूरिन करने वाले पुरुषों को 'सिट्ज़पिंकलर' कहकर चिढ़ाया जाता है।
फ्रांस ने कहा-खुले में नहीं, गमले में हों हल्के, इससे फूल खिलेंगे
कई फ्रांसीसी शहर भी खुले में यूरिन की समस्या से परेशान थे। बड़ी संख्या में यूरिनल और टॉयलेट बनाने के बाद भी लोग खुले में, दीवार या पेड़ के सहारे पेशाब करते थे। जिसे देखते हुए फ्रांस में एक नया कॉन्सेप्ट लाया गया।
जिन इलाकों में लोग खुले में यूरिन पास करते, वहां एक खास तरह का गमला रखा गया। जिसके नीचे एक बॉक्स बना था। फूलों के नीचे यूरिन पास करने की जगह थी, जो सीधे बॉक्स से मिलती थी। बॉक्स में पहले से मौजूद घास-फूस और मिट्टी के साथ मिलकर यूरिन से खाद बन जाती और फूल खिलते।
पब्लिक स्विमिंग पूल में 75 लीटर यूरिन
पानी के अंदर जाने पर कोई कितना ही यूरिन पास करे, किसी की नजर में नहीं आता और न ही उस पर किसी तरह का फाइन हो पाता है। यही वजह है कि खुले में पानी गिराने के शौकीनों के लिए पब्लिक स्विमिंग पूल पसंदीदा जगह बन गई है।
5 साल पहले कनाडा के कुछ पब्लिक स्विमिंग पूल की जांच की गई। साइंटिस्ट ने पूल के पानी के सैंपल की जांच के बाद पाया कि एक बड़े आकार के पूल में कम से कम 75 लीटर यूरिन मौजूद था।
कई मौकों पर ओलिंपिक स्विमर्स भी स्वीकार कर चुके हैं कि वो यूरिन पास करने के लिए पूल के बाहर नहीं जाते।
रोमन साम्राज्य में यूरिन पर लगा था टैक्स, निकला एक मशहूर जुमला
यूरिन का व्यवसायिक इस्तेमाल सबसे पहले रोमन साम्राज्य में हुआ था। लगभग दो हजार साल पहले रोम में यूरिन का इस्तेमाल अमीरों के महंगे कपड़ों को धोने के लिए किया जाता था। इसके लिए रोम के सार्वजनिक शौचालयों से पेशाब को इकट्ठा कर उसे सड़ाया जाता और अमोनिया बनाया जाता था। ये अमोनिया डिटर्जेंट का काम करता था।
बाद में कुछ व्यापारियों ने यूरिन से डिटर्जेंट बनाकर बेचना शुरू कर दिया। जिससे उनको काफी मुनाफा होता। जिसको देखते हुए रोम के किंग ‘वेस्पैसियन’ ने सीवर से पेशाब निकालने पर टैक्स लगा दिया।
जब किंग के बेटे टीटो को इसकी खबर हुई तो उसने अपने पिता से कहा कि यूरिन पर टैक्स लेना राज परिवार की मर्यादा के खिलाफ है।
जिसके बाद किंग ने अपने बेटे को एक सिक्का दिया और सूंघने को कहा। फिर किंग ने पूछा कि क्या तुम्हें इस सिक्के से पेशाब की गंध आई? बेटे ने ना में सिर हिलाया। तो किंग बोले यह सिक्का पेशाब के टैक्स का है। अगर गंध नहीं आती तो इसको लेने में कोई बुराई नहीं।
यहीं से वो मशहूर जुमला निकला कि 'पैसे से कभी दुर्गंध नहीं आती।'
देश में यूरिन को विरोध के तरीके से जोड़ा गया
आपने झगड़ों के दौरान कहा जाना वाला वह मशहूर जुमला सुना ही होगा कि ‘अब मैं फलाने के दरवाजे पेशाब करने भी नहीं जाऊंगा’।
देश में पेशाब करने को शान और विरोध के प्रतीक के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है। नीलोत्पल मृणाल का एक पॉपुलर उपन्यास है- ‘औघड़’। इस उपन्यास का नायक बिंरची रोज अपने गांव के जमींदार ठाकुर के घर की दीवार पर पेशाब करता है। उसका मानना है कि इसके सहारे वो एक न एक दिन ठाकुर के सामंतवादी साम्राज्य को गिराने में कामयाब हो जाएगा।
नमक मजदूरों को नहीं होती पेशाब करने की इजाजत
समुद्र से या नमकीन झील से नमक बनाने के दौरान नमक के पानी को बड़े-बड़े मैदानों में सुखाने के लिए फैलाया जाता है। लेकिन यहां काम करने वाले मजदूरों के लिए ये मैदान मुश्किलें पैदा करता है। यहां के मजदूरों को काम के दौरान 10 घंटे तक यूरिन पास करने की इजाजत नहीं होती।
चारों तरफ नमक और उसका पानी फैला होता है, कहीं भी यूरिन पास करने से उसके नमक में मिल जाने का खतरा होता है। जिसके चलते नमक के खेतों में मजदूर घंटों बिना पानी पिए काम करते हैं। ताकि उन्हें यूरिन पास के लिए कई किलोमीटर दूर न जाना पड़े।
खुले में यूरिन पास करने पर भिड़े थे चीन और हांगकांग
खुले में पेशाब करना कई बार फाइन, आपसी विवाद या शर्मिंदगी की वजह तो बनता ही है। लेकिन ये दो देशों के टकराव की वजह भी बन चुका है। ऐसा हुआ था साल 2014 में। चीन का एक परिवार हांगकांग घूमने गया। जहां 2 साल के एक बच्चे को उसकी मां ने सड़क के किनारे पेशाब करा दिया।
स्थानीय लोगों ने इस चीनी परिवार के साथ हाथापाई की और वीडियो को सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया। इस एक घटना ने हांगकांग में चीन विरोधी आंदोलन को हवा दे दी। हांगकांग वालों ने चीनी लोगों को असभ्य और गंदा कहना शुरू कर दिया। जिसके बाद चीन की सरकारी मीडिया ने इसकी कड़ी आलोचना की। इसके विरोध में चीन के सोशल मीडिया वीबो पर कई चीनी युवकों ने हांगकांग के मुख्य चौराहे पर आकर यूरिन पास करने की धमकी दे डाली।
चीन में सख्त यूरिनेटिंग मैनर्स नहीं, अंडे तक उबाल कर खाते हैं लोग
खुले में यूरिन करने को लेकर चीन में भारत जैसा ही ढीला-ढाला रवैया देखने को मिलता है। जबकि हांगकांग में ऐसा करना अपराध माना जाता है। चीन के डोंगयोंग इलाके में लोग पेशाब में अंडे उबालकर खाए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि पेशाब में उबले अंडे को खाने से सर्दी-जुकाम नहीं होता और लोग हेल्दी रहते हैं।
2008 में यहां के एक शहर ने पेशाब में उबले अंडे को अपने यहां की ‘सांस्कृतिक विरासत’ घोषित कर दिया और यूनेस्को से भी अपनी विरासत को मान्यता देने की अपील की।
भारत में धार्मिक चित्रों के जरिए गलत आदत पर लगाई गई रोक
दीवारों पर यूरिन करने की समस्या से निजात पाने के लिए देश के कई इलाकों में धर्म का सहारा लिया जाता है। इसके लिए संभावित दीवार पर भगवान, मंदिर और मजार वगैरह के चित्र बना दिए जाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के चलते लोग ऐसी जगहों पर यूरिन पास नहीं करते।
हालांकि ऐसा करना गैर-कानूनी है। कई जगहों पर ऐसा करने वालों पर कानूनी कार्रवाई की खबरें भी आ चुकी है।
100 लोगों पर हो एक पब्लिक टॉयलेट सीटःWHO
WHO की गाइडलाइन के मुताबिक शहरों में 100 लोगों की आबादी पर 1 पब्लिक टॉयलेट सीट जरूरी है। लेकिन देश के शहरों में इसके मुकाबले काफी कम टॉयलेट हैं। उदाहरण के लिए नागपुर शहर की आबादी 24 लाख है। इस हिसाब से यहां 24 हजार पब्लिक टॉयलेट होने चाहिए। मगर, यहां सिर्फ 64 टॉयलेट्स हैं।
दूसरी ओर, नागपुर में खुले में यूरिन पास करने वाले लोगों से पिछले 4 साल में 7 लाख रुपए जुर्माना वसूला गया।
कानून से मिला टॉयलेट यूज करने का अधिकार, 5 स्टार होटल भी नहीं रोक सकता
देश के बड़े शहरों को छोड़ दें तो कस्बों और छोटे शहरों में पब्लिक टॉयलेट इतनी संख्या में मौजूद नहीं हैं कि खुले में यूरिन करने पर पूरी तरह रोक लगाई जा सके। लेकिन भारत का कानून इमरजेंसी में किसी भी होटल या रेस्टोरेंट के वॉशरूम को इस्तेमाल करने का अधिकार देता है।
‘सराय एक्ट-1887’ की धारा 7 के अनुसार कोई भी शख्स किसी भी होटल में मुफ्त टॉयलेट का इस्तेमाल कर सकता है। इससे रोकने पर होटल पर 20 रुपए जुर्माने का प्रावधान है।
रावण ने खुले में किया था पेशाब, बन गया तालाब
बुराई का प्रतीक माना जाने वाला रावण भला खुले में पेशाब करने की बुराई से कहां दूर रह सकता था। कहानी कुछ यूं है कि एक बार रावण ने तपस्या करके भगवान शिव को खुश कर लिया और उन्हें अपने साथ हिमालय से लंका ले जाने के लिए तैयार कर लिया। इधर, बाकी देवता भगवान शिव के लंका जाने की खबर से चिंतित हो गए।
ऐसे में जल के देवता वरुण रावण के पेट में समा गए। लंका जा रहा रावण देवघर में शिवलिंग को रख हल्का होने चला गया। वरुण देवता की माया के चलते रावण को हल्का होने में काफी वक्त लग गया। जब तक वो लौटा शिवलिंग जमीन पर स्थापित हो चुका था। रावण लाख कोशिशों के बाद भी शिवलिंग हिला नहीं पाया और खाली हाथ लंका लौट गया।
झारखंड के देवघर में मौजूद यह शिवलिंग 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यहां आज भी एक तालाब है। जिसके बारे में लोकमान्यता है कि ये रावण के पेशाब करने से बना है।
ग्राफिक्स: सत्यम परिडा
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