चुनाव सामने हैं। सरकारों को पेट्रोल- डीज़ल की क़ीमतें याद आने लगी। इसलिए नहीं कि वे जनता का भला चाहती हैं, बल्कि इसलिए कि एक पेट्रोल- डीज़ल ही हैं जिनकी क़ीमतें तुरंत असर करती हैं और लोगों को इसकी अनुभूति भी तुरंत होती है। क़ीमतें घटने पर वोट मिलने की संभावना बढ़ जाती है। केंद्र सरकार के पेट्रोलियम मंत्री ने तेल कंपनियों से कहा है कि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल की क़ीमतें अब स्थिर हैं और कंपनियों का घाटा भी पूरा हो चुका है, इसलिए अब क़ीमतें घटनी चाहिए।
2010 से पेट्रोल और 2014 से डीज़ल की क़ीमतों पर नियंत्रण से सरकार ने हाथ खींच लिया था और क़ीमतें तय करने का अधिकार तेल कंपनियों को दे दिया था। इसे लोग कैसे समझें? जब केंद्र सरकार दबाव बनाती है तभी तेल कंपनियाँ क़ीमतें गिरा देती हैं तो फिर सरकार का दखल तो है ही। परोक्ष रूप से ही सही। कंपनियाँ कहना तो मानती हैं। फिर क़ीमतों का ख़्याल सरकार को चुनाव के वक्त ही क्यों आता है? इसके पहले भी चुनाव पूर्व ही क़ीमतें घटाई गई थीं। अब फिर क़वायद शुरु हो चुकी है।
ख़ैर, केंद्र सरकार को ख़्याल तो आता है। राज्य सरकारों के कानों में तो जूं तक नहीं रेंगती। कंपनियाँ जब भाव घटाती हैं तब भी कुछ राज्य सरकारें अपने टैक्स का प्रतिशत नहीं घटातीं। केंद्र द्वारा हर बार कहा जाता है कि राज्य सरकारें वैट में कमी करें तो दाम घटाने का फ़ायदा दुगना हो सकता है लेकिन राज्य किसी की नहीं सुनते। जैसे उन्हें जनता से कोई लेना- देना ही नहीं हो!
दरअसल, पेट्रोल- डीज़ल से जो टैक्स सरकारों को मिलता है वह बहुत ज़्यादा होता है। सरकारी अफ़सर इसका सालभर का घाटे का मोटा आँकड़ा बताकर वैट कम करने की मंशा को हमेशा ठुकरा देते हैं। यही वजह है कि राज्य सरकारें वैट का प्रतिशत घटाने से हमेशा मुकर जाती हैं। नुक़सान लोगों को होता है।
प्रमुख शहरों में पेट्रोल-डीजल की कीमतें...
शहर |
पेट्रोल |
डीजल |
दिल्ली |
96.72 |
89.62 |
कोलकाता |
106.03 |
92.76 |
मुंबई |
106.31 |
94.27 |
चेन्नई |
102.63 |
94.24 |
चंडीगढ़ |
96.20 |
84.26 |
भोपाल |
108.65 |
93.90 |
जयपुर |
108.48 |
93.72 |
रायपुर |
102.45 |
95.44 |
अहमदाबाद |
96.39 |
92.15 |
बेंगलुरु |
101.94 |
87.89 |
लखनऊ |
96.57 |
89.76 |
नोएडा |
96.79 |
89.96 |
गुरुग्राम |
97.18 |
90.05 |
(दाम रुपए प्रति लीटर में)
नवंबर 2021 और मई 2022 में अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल क़ीमतें बढ़ने के बावजूद केंद्र सरकार ने पेट्रोल- डीज़ल पर ड्यूटी कम की थी लेकिन चूँकि राज्य सरकारों ने वैट का प्रतिशत नहीं घटाया, इसलिए आम आदमी को इसका उतना फ़ायदा नहीं हो सका जितने की केंद्र ने उम्मीद की थी। इस समस्या का कोई तो निराकरण होना ही चाहिए। कोई राज्य अपना टैक्स घटा देता है और कोई नहीं घटाता, यह ठीक नहीं है। केंद्र सरकार जिस प्रतिशत में ड्यूटी घटाती है, राज्यों को भी उसी परिमाण में वैट प्रतिशत घटाना चाहिए।
यह अनिवार्यता जब तक लागू नहीं होगी, लोगों तक क़ीमतें घटने का पूरा फ़ायदा नहीं पहुँच पाएगा।